चाहे धार्मिक दृष्टिकोण के आधार पर देखा जाए या फिर सामाजिक सरोकारों के लिहाज़ से, दान का महत्व बहुत अधिक है। कुछ लोग किसी ख़ास मौके पर या किसी तीज–त्योहार पर दान करने में विश्वास रखते हैं तो कुछ के लिए यह उनकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा होता है। दान कई तरह से कई रूपों में किया जाता है और न सिर्फ़ भारत में, बल्कि अलग–अलग ढंग से पूरी दुनिया के हर हिस्से में दान को महत्व दिया जाता है। अगर हम अभी के समय को देखें तो कुछ लोग नए साल पर डोनेशन करना पसंद करते हैं तो कुछ ही दिनों में कई ऐसे स्नान, तीज–त्योहार और ऐसे धार्मिक उत्सव आने वाले हैं, जब लोग दान देते–करते हैं। सभी धर्मों–संप्रदायों में दान की महिमा बहुत ऊंची कही गई है। हमारे इतिहास में अनेक दानवीरों के नाम अमर हैं, जिन्होंने दान को अपने जीवन का इतना अटूट हिस्सा बनाए रखा कि दूसरों की मदद के लिए अपना जीवन तक ज़रूरत पड़ने पर दांव पर लगा दिया था।
ऐसा इसलिए भी है कि दान केवल दान ही नहीं होता है, बल्कि यह मानवीय सरोकारों और मूल्यों की शानदार मिसाल है। यह समाज एक–दूसरे की मदद और सहभागिता से ही चलता है, इसलिए दान को हम इसके छिपे हुए अर्थों में देखें तो यह इसी सहभागिता का एक रूप है। कभी हम किसी रूप या नाम से किसी के लिए कुछ करते हैं, किसी की मदद करते हैं या किसी के काम आते हैं तो कभी हमें भी किसी न किसी की मदद या दया की ज़रूरत होती है। यह दुनिया ऐसे ही चलती है।
अब यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि दान या मदद किए कैसे जाएं। इस सवाल की वजह ये भी है कि हम अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग दान या कहें दूसरों की मदद कुछ इस तरह से करते हैं कि किसी और को उनके इस काम की कानोकान ख़बर तक नहीं होती। जिनकी हर मदद पूरी तरह से निस्वार्थ भाव से भरी होती है। अपने इन कार्यों से उन्हें कुछ हासिल होता है तो वह है केवल आत्मसंतुष्टि। इसके अलावा बदले में उन्हें और कुछ नहीं चाहिए होता है।
दूसरी तरफ़ कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अगर किसी को एक केला भी दान या मदद के नाम पर देते हैं तो उसकी भी फोटो खींचना नहीं भूलते। हालांकि हम तो ये बात मज़ाक में कह रहे हैं, लेकिन हमारा समाज भी और सोशल मीडिया तक भी इस बात का गवाह है और कई वायरल फोटो या वीडियो वग़ैरह इस बात के सुबूत भी हैं कि कुछ लोग दूसरों की मदद के नाम पर इतना घटिया हरकत करते हैं, जो दूसरों के आत्मसम्मान को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।
अब चाहे दान कह लीजिए या मदद, यह भी पात्र व्यक्ति, यानी की ज़रूरतमंद व्यक्ति की की जा सकती है और किसी भी चीज़ की हो सकती है, चाहे वह खाद्य पदार्थ हो, कपड़े हों, कोई और ज़रूरी सामान हो या फिर आर्थिक मदद हो। यदि आप किसी व्यक्ति को दान या मदद के नाम पर कोई भी वस्तु दे रहे हैं तो उसे अपने तक ही सीमित रखिए। न तो दूसरों से उस बात की चर्चा कीजिए, न ही किसी दूसरे के सामने दिखावा करते हुए इस काम को पूरा करें।
अगर आप किसी को नई चीज़ें दे रहे हैं तो यह एक अच्छी बात है, लेकिन अगर आप किसी की मदद करने के लिए ऐसी चीज़ें दे रहे हैं, जिसकी उस व्यक्ति को तो ज़रूरत है, लेकिन आप वह सामान पहले इस्तेमाल कर चुके हैं, जैसेकि कपड़े, जूते, खिलौने, बिस्तर वग़ैरह तो उसे देते हुए भी दूसरे व्यक्ति के सम्मान व गरिमा का ख़्याल रखना न भूलें। पुराने कपड़े हमेशा धोकर, प्रेस करके और अच्छी हालात में ही किसी को दें। वह ऐसे भी न हों कि आपके लिए तो उपयोगी नहीं रह गए हैं, साथ ही इस हालत में भी नहीं हैं कि कोई और भी उसका ज़्यादा उपयोग कर पाए तो ऐसा करने से बचें। यही बात दूसरे सामान पर भी लागू होती है। अगर आप ये मदद दिल से कर रहे हैं, दिखावे के लिए नहीं तो सामान न सिर्फ़ अच्छी हालत में दें, बल्कि अच्छी तरह से भी दें। संभव हो तो उसे पैक कर दीजिए। यह मदद सामने वाले की ज़रूरत भी पूरी करेगी और उसकी गरिमा को भी बनाए रखेगी।
एक और बात जो अक्सर देखने में है, वह है खाना बचाने की आदत। पहली और सबसे ज़रूरी बात कि कभी भी अपना प्लेट में बचा हुआ जूठा खाना किसी व्यक्ति को न दें। इस जूठन को आप किसी पशु या पक्षी को दे सकते हैं। इसका सबसे अच्छा तरीका तो यही है कि प्लेट में खाना हमेशा उतना ही लीजिए, जितना आप पूरा खा सकें। चाहे दस बार प्लेट में खाना लेना पड़े, वह इतना ग़लत नहीं है, जितना कि प्लेट में जूठे दो निवाले तक भी छोड़ देना। बाकी बचा हुआ साफ़ खाना आप पैक करके, पेपर प्लेट, ग्लास, स्पून और नैपकिन के साथ रखें तो लगेगा कि एक इंसान ने दूसरे इंसान को खाना दिया है। ये तरीका आप तब भी अपना सकते हैं, जब कही लंच या डिनर पर बाहर जाएं और तब भी, जब घर में ही खाना काफ़ी ज़्यादा बच जाए।
होगी आप सच्ची नेकी, जब मदद सिर्फ़ मदद ही होगी, एहसान नहीं।