नृत्य यानि कि डांस, अभिव्यक्ति का एक बोलता हुआ माध्यम है. भारत में नृत्य के कई प्रकार प्रचलित हैं. प्रत्येक राज्य व उनकी अलग अलग जीवन संस्कृति में डांस का प्रभाव बना हुआ है. शास्त्रीय और पारंपरिक नृत्य से लेकर लोकनृत्य और आदिवासियों के नृत्य तक मोहक विधाएं अभिव्यक्ति को सुन्दर बनाती हैं. डांस विधा में क्रोध, मोक्ष , प्रसन्नता व्यक्त करते हुए समझाने का सरल माध्यम प्रस्तुत होता है. पाश्चात्य संस्कृति के साथ भारतीय संस्कृति के तालमेल में आज अनेक प्रकार के नृत्य सामने आ रहे हैं. जहाँ खजुराहो नृत्य महोत्सव दर्शकों को देश के बेहतरीन नर्तकों तथा नृत्य के हर तरीके को देखने का अवसर प्रदान करता है, वहीँ टीवी चैनलों पर तरह तरह की डांस स्पर्धाएं छुपी हुई प्रतिभाओं को मौका दे रही हैं.
हमारे देश में भरत नाट्यम (तमिल नाडु), सत्रीया (असम), मणिपुरी (मणिपुर), कथकली (उत्तरी और पश्चिमी भारत), ओडिसी (उड़ीसा), कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), कथकलीली तथा मोहिनी अट्टम (केरल) आदि नृत्य काफी चर्चित हैं.
जन्म से लेकर मृत्यु तक आदिवासियों के हर संस्कार में नाच-गाकर ही देवताओं का आभार जताने की परंपरा रही है, नृत्य और गायन के जरिए ही वे अगली पीढ़ी तक पुरखों के ज्ञान और विरासत को सदियों से हस्तांतरित करते रहे हैं. आदिवासी समुदाय में नृत्य तब किया जाता है, जब कोई अनुष्ठान हो, खेती की शुरुआत से लेकर नई फसल के आने तक नृत्य कर देवताओं का आभार जताया जाता है.
नागालैंड का माकू हिमीशी नृत्य पुरुषों द्वारा शिकार में सफलता मिलने के बाद अथवा लड़ाई में विजय के पश्चात किया जाता है.महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटा नृत्य होली पर्व पर किया जाता है. जिसमें मुहं को रंग कर, मुखोटे लगा कर. मोर पंखों से खुदको सज्जित कर नृत्य होता है.
अरुणाचल प्रदेश के इदुमिसमी जनजाति में बनगला नृत्य किया जाता है, जिसके अंतर्गत नृतक, व्रत करके मृतात्मा से संवाद करते हैं.
पारंपरिक भरत नाट्यम तमिल नाडु का वह नृत्य है जो मंदिरों में किया जाता था, इसका संबंध धार्मिक पुस्तकों और पौराणिक कथाओं से है. फुर्तीली और जटिल लेकिन सफाई से की जाने वाली चेष्टाएँ, नर्तकों की चमकीली पोशाकें और सर से पाँव तक पहने जाने वाले भारी भरकम गहने दर्शकों की नज़रों को बांध लेते हैं.
असम का सत्रीया नृत्य और नाटक का मिश्रण होता है , सत्रीया नृत्य की रचना 15वीं सदी में की गई थी और तब से ले कर आज तक यह एक जीवित परंपरा है. यह साधारणतया मठों में, धार्मिक भोज में प्रस्तुत किया जाता है जहाँ नर्तक सुंदर पट रेशम की पोशाक पहन कर और परंपरागत असमी गहनों से सज कर, बांसुरी हारमोनियम और वाइलिन के सुर के साथ और झांझ और ढ़ोल की ताल से कदम ताल मिलाते हुए मन मोह लेने वाला समां बांध देते हैं.
कुचीपुड़ी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का नृत्य है और यह मुख्यतः मंदिर में प्रस्तुत किया जाने वाला नृत्य है. इसमें नर्तकी तह दार साड़ी पहनती है, जो एक पंखे की तरह खुलती है, जब कि नर्तक धोती पहनता है. नर्तक सुंदर गहनों से सजावट करते हैं और झांझ, बांसुरी, वीणा और तंबूरे की सुर-ताल पर नृत्य करते हैं.
ओडिसी डांस की प्रस्तुति में नर्तकियाँ चमकदार रंग की रेशमी साड़ी में तथा चांदी के गहने और घुँघरू पहनते हैं, यह नृत्य उड़ीसा में उत्पन्न हुआ है. इस नृत्य में पौराणिक और लोक गाथाओं का समावेश होता है. ओडिसी में प्रभावशाली चेष्टाएँ और सुंदर हाव-भाव शामिल होते हैं.
कथक धार्मिक कथाएँ और किंवदंतियाँ समाहित होती हैं, जिन्हें ताल में पिरो कर प्रस्तुत किया जाता है, तथा इसमें पाँव की ताल, हाथों तथा आँखों की विभिन्न चेष्टाओं के माध्यम से और चेहरे के हाव भाव द्वारा कहानी की बारीकियों को उजागर किया जाता है. कथक नृत्य में नर्तकों की दक्षता देख कर दर्शक मंत्र मुग्ध हो जाते हैं. नर्तकियाँ लंबा कामदार लहंगा, कामदार चोली और चुनरी में सजी होती हैं.
मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति मणिपुर में हुई है. इस दिव्यता से परिपूर्ण नृत्य में कला अपनी बुलंदी पर पहुंच जाती है और देखने वालों को एक आध्यात्मिक अनुभव कराती है। यह नृत्य को अधिकतर राधा-कृष्ण की गाथाओं के इर्द गिर्द बुना जाता है, इस मंद, शांत और शालीन नृत्य में नर्तक मंद स्वर में गाए जाने वाले गीतों पर सुंदर और शालीन चेष्टाएँ करते हैं। इस नृत्य में नर्तकियाँ एक विशेष तरह का घाघरा पहनती हैं, जिसे सरोंग कहते हैं, जबकि नर्तक धोती और पगड़ी पहनते हैं।
केरल के कथकली नृत्य की लगभग 300 साल पुरानी शैली है. यह भूतकाल की कहानियों को प्रदर्शित करता है जिस में महाकाव्य, वीरगाथाएँ और पौराणिक कहानियाँ समाहित होती हैं, नर्तकों का श्रंगार वास्तव में अद्भुत होता है और जब संगीत और ताल का श्रद्धा और विश्वास से मिलन होता है तो देखने वालों पर विस्मयकारी प्रभाव पड़ता है. इस नृत्य में भाग लेने वाले नर्तक जटिल वस्त्रों में अलंकृत होते हैं और अपने चेहरे की हर मांसपेशी से भाव प्रदर्शन करते हैं और अपनी उँगलियों के घुमाव और होंटों के कंपन से विशेष प्रभाव पैदा करते हैं.
इसके अलावा संस्कृत और मलयालम मिश्रण वाले गीतों से सजा केरल का मोहिनीअट्टम नृत्य शालीन, सुंदर और स्त्री सुलभ प्रकार है. नृत्य के इस प्रकार ने अपना नाम ‘मोहिनी’ से लिया है जो भगवान विष्णु का स्त्रीलिंग अवतार है. यह नृत्य साधारणतया एक अकेली नर्तकी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तथा इस डांस में संगीत के साथ सुंदर भावों और चेष्टाओं द्वारा भावनात्मक नाटिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं.