तेज प्रताप नारायण के व्यंग्य संग्रह ‘ ज़ीरो बटा सन्नाटा’ पर हुई परिचर्चा

हाल ही में नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित रेलवे क्लब हाउस में ‘परिवर्तन साहित्यिक मंच’ एवं ‘साहित्य संचय’ के संयुक्त प्रयास से कवि-लेखक तेज प्रताप नारायण के व्यंग्य संग्रह ‘ज़ीरो बटा सन्नाटा’ पुस्तक पर परिचर्चा आयोजित की गई।

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Discussion on Tej Pratap Narayan's satirical collection 'Zero Bata Sannata'

अभी हाल ही में साहित्य संचय, दिल्ली से प्रकाशित होकर आए तेज प्रताप नारायण के इस व्यंग्य संग्रह का हिंदी पाठकों के बीच खुले दिल से स्वागत किया जा रहा है। पुस्तक ज़ीरो बटा सन्नाटा कुल 65 व्यंग्य लेखों का संग्रह है।

तेज प्रताप नारायण हिंदी के ऐसे समकालीन रचनाकार हैं, जो अपने लेखन में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों पर लगातार प्रहार करते रहे हैं। ‘सूरज की नई किरण’, ‘अपने-अपने एवरेस्ट’, ‘सीमाओं के पार’ और ‘किंतु-परंतु’ उनके कविता संग्रह हैं तथा ‘कितने रंग ज़िंदगी के’ और ‘एयरपोर्ट पर एक रात’ कहानी संग्रह। ‘टेक्निकल लव’ उनका पहला उपन्यास है तथा ‘जिंदगी है… हैंडल हो जाएगी’ एक साझा उपन्यास। समकालीन परिप्रेक्ष्य में उनकी यह नई पुस्तक बड़ी प्रासंगिक लगती है, क्योंकि इसमें लेखक ने जीवन के लगभग हर पक्ष पर लेखनी चलाई है। वह सभी के लिए समानता, स्वतंत्रता की बात करते हैं।

पुस्तक परिचर्चा के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं व्यंग्यकार डॉ. रवीन्द्र कुमार भी सम्मिलित हुए और अपने अध्यक्षीय भाषण में लेखक को बधाई देते हुए उन्होंने पुस्तक की बारीकियों पर प्रकाश डाला।

इस परिचर्चा में चार अन्य वक्ता भी शामिल हुए। इसमें निदेशक, भारत सरकार तथा लेखक, आलोचक जय प्रकाश फ़कीर, प्रभाष जोशी के जीवनीकार तथा दयाल सिंह कॉलेज (डीयू) में हिंदी के सहायक प्रोफेसर डॉ. रामाशंकर कुशवाहा, कवि और आलोचक डॉ. संतोष पटेल तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शोधार्थी एवं युवा लेखक सुशील द्विवेदी शामिल रहे।

जय प्रकाश फ़कीर ने दैनिक जीवन से उदाहरण देकर व्यंग्य को समझाने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने कहा कि यह पुस्तक उसमें निहित अन्दुरूनी भाव बोध और भाषिक पक्ष को समझने के लिए आलोचना के गढ़े गए प्रतिमानों से ऊपर उठकर पढ़ने की मांग करती है। वे पुस्तक के मिथकीय व्यंग्य के सहारे माहौल को थोडा हल्का-फुल्का भी बनाते गए। वहीं डॉ. कुशवाहा पुस्तक की विषय-वस्तु के सन्दर्भ में बात करते हुए उसकी भाषा में लोक की अनुभूति को इंगित करते हैं। साथ ही वे कहते हैं कि पुस्तक में लेखक विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाता है, इसलिए उन्हें मुद्दों का लेखक भी कहना ग़लत न होगा।

डॉ. संतोष पटेल शिक्षण व्यवस्था आदि के उदाहरणों से व्यंग्य की पैनी धार और शक्ति को समझाते हुए पुस्तक में निहित व्यंग्यात्मता पर प्रकाश डालते हैं। सुशील द्विवेदी ने व्यंग्य की विभिन्न विधाओं में उपस्थिति को हमारे समक्ष रखा और ‘ज़ीरो बटा सन्नाटा’ की व्यंग्य-क्षेत्र में एक ज़ोरदार पहल का स्वागत किया |

इस कार्यक्रम की संचालिका भारती प्रवीण रहीं, जिनके बड़े ही रोचक और काव्यात्मक संचालन ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन ऋतु रानी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अनेक साहित्यकारों, शोधार्थियों, कलाकारों और समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया था।

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