Dwarka: उपनगरी के सेक्टर 8 का भूगोल अन्य इलाकों की तुलना में थोड़ा अलग है। इस सेक्टर में आपको बहुमंजिली इमारतों के बजाय कोठियां नजर आएंगी। द्वारका के अन्य सेक्टरों की तुलना में यह थोड़ा खुला खुला नजर आता है। चार ब्लॉक
में विभाजित इस सेक्टर में करीब एक हजार आवासीय प्लॉट डीडीए ने बनाए। अधिकांश अब आबाद हो चुके हैं। इस शानदार भूगोल के बावजूद बात यदि समस्याओं की करें तो उपनगरी का सबसे पिछड़ा हुआ इलाका प्रतीत होता है। खासकर मानसून के समय पिछले कुछ वर्षों से यह सेक्टर झील बन जाती है।
एयरपोर्ट के रनवे से सटा है सेक्टर
द्वारका सेक्टर 8 आइजीआइ एयरपोर्ट के रनवे से सटा हुआ इलाका है। जब से एयरपोर्ट पर टर्मिनल 3 बना तब से यहां समस्या बढ़ती चली गई। पहले एयरपोर्ट पर कच्ची जमीन पर्याप्त थी। पानी को धरती सोख लेती थी लेकिन टर्मिनल बनने के बाद कच्ची जमीन के एक बड़े हिस्से पर कंक्रीट की परत बिछती चली गई। नतीजा अब बारिश के दौरान पानी तेज गति से बाहर की ओर बहता है। खासकर एयरपोर्ट की चारदीवारी बनने के बाद तो इसका हाल और बुरा होता चला गया।
एयरपोर्ट का पानी यहां आकर हो जाता है जमा
दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि एयरपोर्ट से एक ढलान द्वारका की ओर आती है। ऐसे में पानी का स्वभाविक बहाव सेक्टर 8 की ओर होने लगता है। तेज बारिश होने पर पानी का बहाव तेजी से हाेता है। नतीजा यह होता है कि सेक्टर आठ का पूरा इलाका चार से पांच घंटे तक जलमग्न स्थिति में रहता है। इस दौरान सेक्टर के जो निचले इलाके हैं वहां पानी भर जाता है। भूतल व बेसमेंट में पानी जमा होने लगता है।
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काफी नुकसान
सेक्टर आठ निवासी अमित कुमार बताते हैं कि जलभराव की समस्या के कारण सेक्टर 8 निवासियों को काफी परेशानियों से दो चार होना पड़ता है। भूतल पर लगे बिजली के मोटर में पानी भरने से वे खराब हो जाते हैं। इसी तरह लकड़ी के फर्नीचर खराब हो जाते हैं। बच्चों को घुटने भर पानी में चलना पड़ता है। गाड़ियां खराब हो जाती हैं। सरकारी एजेंसियों को इस समस्या की ओर
ध्यान देना चाहिए।
समस्या का तत्कालिक और स्थायी समाधान दोनों हो सुनिश्चित
सेक्टर 8 निवासी असीम जोशी कहते हैं कि इस समस्या का तत्कालिक व स्थायी दोनों स्तरों पर समाधान प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। तत्कालिक समाधान के तहत डीडीए को इस पूरे इलाके के लिए कुछ पंप मशीनों की व्यवस्था करनी चाहिए जो बारिश की स्थिति में एयरपोर्ट से आने वाले पानी को पंप कर नाले में सीधे डाले। एक कंट्रोल रूम बनाया जाना चाहिए, जो मानसून के दौरान पूरी स्थिति पर नजर रखे।