स्कूलों में फीस वृद्धि के विरोध में उतरे न्यू ईरा फ्लैट ओनर वेलफेयर एसोसिएशन (NEFOWA)और NCR Parents Association

ग्रेटर नोएडा की न्यू ईरा फ्लैट ओनर वेलफेयर एसोसिएशन और एनसीआर पेरेंट्स एसोसिएशन ने किया स्कूलों में फीस वृद्धि का विरोध।

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Greater Noida West: ग्रेटर नोएडा वैस्ट में स्कूली बच्चों के माता-पिता स्कूलों की मनमानी और अंधाधुंध फीस वृद्धि से परेशान हैं। लगातार बनी हुई इस स्थिति से त्रस्त अभिभावकों ने अपने मामले को सड़कों पर ले जाने का निश्चय किया। इसी श्रृंखला में हाल ही में एनसीआर पेरेंट्स एसोसिएशन और नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने अलग-अलग सुविधाओं के नाम पर स्कूलों द्वारा मनमाना पैसा वसूलने के विरोध में प्रदर्शन किया।

स्कूलों की फीस वृद्धि, ट्रांसपोर्ट चार्ज में बढ़ोत्तरी, ईडब्ल्यूएस कोटे में अनियमितताओं को लेकर सैकड़ों अभिभावकों ने एक साथ आवाज उठाई। इस प्रदर्शन में एक मुद्दे को और ज़ोरदार तरीके से उठाया गया, जिसमें पैरेंट्स का आरोप है कि स्कूल एनसीआरटी की किताबें खरीदने की बजाय निजी प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने पर जोर देते हैं।

एनईएफओडब्ल्यूए के अध्यक्ष अभिषेक कुमार कहते हैं कि हमने जूते पॉलिश करके एक प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया है। स्कूलों में हो रही फीस वृद्धि को लेकर हमने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी दिया है, लेकिन अभी तक हमें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। जब तक हमें अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिल जाता, तब तक हम अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे।

वे आगे कहते हैं कि हम लोग वैसे ही बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। ऐसे में स्कूलों की मनमाने तरीके से फीस वृद्धि ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है। जब तक स्कूलों में बढ़ी हुई फीस को वापस नहीं लिया जाएगा, हम आंदोलन जारी रखेंगे। अगर हमें मुख्यमंत्री के पास अपना पक्ष रखने के लिए लखनऊ जाना पड़ा तो हम वहां भी जाएंगे।

फोटो क्रेडिट: Supplied

एनसीआर पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुखपाल सिंह तूर कहते हैं कि यह स्कूल प्रशासन की पूरी तरह से मनमानी है। फीस बढ़ाने की कोई तुक नहीं है। स्कूलों को परिवारों के प्रति कोराना काल में सहानुभूति रखनी चाहिए, क्योंकि कोरोना काल में जब कामकाज पूरी तरह ठप्प था, तब भी ऑनलाइन क्लास के नाम पर स्कूलों ने मनमानी में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

वे आगे कहते हैं कि फीस शायद इसलिए बढ़ाई गई, क्योंकि सभी को लगा कि कोविड चला गया है, लेकिन अब फिर से कोरोना की चौथी लहर हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। स्कूल फिर से बंद हो रहे हैं और अभिभावक अभी भी वित्तीय संकट से उबर नहीं पाए हैं। ऐसे में स्कूलों की बढ़ी हुई फीस को वापस लिया जाना चाहिए और परिवहन किराए में भी कटौती करनी चाहिए।

ग्रेटर नोएडा में रहने वाली ज्योति जायसवाल कहती हैं कि मेरे बच्चों ने पढ़ाई पूरी कर ली है। फिर भी मैं इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रही हूूं। वे कहती हैं कि स्कूल अभी से अभिभावकों को परिवहन शुल्क का अग्रिम रूप से भुगतान करने को कह रहे हैं, जबकि हाल ही में गाजियाबाद में स्कूल बस में हुई एक छात्र की मौत से सभी पेरेंट्स सदमे में हैं। स्कूल परिवहन सोसायटी केवल कागजों तक ही सीमित होकर रह गया है।

एक अन्य अभिभावक रूपम सिंह कहते हैं कि बढ़ती महंगाई ने हमारे जीवन को वैसे ही दुरुह बना दिया है। पेट्रोल, डीज़ल और सीएनजी की कीमतें आसमान छू रही हैं। लोगों के कामकाज अधर में लटके हुए हैं। ऐसे में अब स्कूल भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं, जिसमें इंसानी सरोकारों और सहानुभूति का नामोनिशान तक नहीं होता है। स्कूल प्रबंधन अब पूरी तरह से व्यावसायिक हो गए हैं। उन्हें अपने अलावा किसी की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। बच्चों के अभिभावक किन स्थितियों से जूझ रहे हैं, स्कूलों को इस बात से कोई मतलब नहीं है।

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पल्लवी गुप्ता, जो कि पेशे से खुद भी एक शिक्षिका हैं, वे कहती हैं कि मैं एक मां और पेशे से शिक्षिका, दोनों रूपों को महसूस कर सकती हूं। दोनों का अपना-अपना दर्द है, लेकिन मैं ऐसी शिक्षा प्रणाली के सख्त खिलाफ हूं, जहां स्कूल प्रबंधन केवल अपना बुक सेट लेने के लिए मजबूर करते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि स्कूलों में केवल बच्चों को ही शिक्षा नहीं दी जाती है, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं को महसूस करने की भी एक जगह होते हैं और इस बात का सबूत सबसे पहले स्कूलों को ही अपने आचरण से देना होगा।

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