नोएडा। दिल्ली-एनसीआर की लिस्ट के नज़रिये से अगर देखा जाए तो बरौला नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन से महज़ पांच मिनट की दूरी पर है और नोएडा के सेक्टर 49 के अंतर्गत आता है, लेकिन अगर सुविधाओं की बात की जाए तो यह हमें किसी दूरदराज़ के कस्बे में होने का पूरा सुख उठाने का मौका देता है।
अब बात गर्मियों की है तो बिजली के ज़िक्र के बिना कैसे पूरी हो सकती है, लेकिन बिजली! क्या कहने बरौला में बिजली की सुविधा के! बिजली आज भी बरौला वासियों के लिए कोई बुनियादी या ज़रूरी सुविधा नहीं, बल्कि किसी लग्ज़री का एहसास दिलाती सरीखी चीज़ है। बिजली आना, वह भी इन गर्मियों की तपती सुबहो-शामों में एक ख़ुशखबरी की तरह होता है। अब जो आता है, उसे जाना भी होता है तो खुशखब़री की उम्र लेकर आई बरौला की बिजली किसी शर्मीले मेहमान की तरह ही ज़रा देर को आती है और फिर लंबी जुदाई का सबब बन जाती है। अब एक बार जो ये बिजली जाती है तो किसी स्वाभिमानी व्यक्ति की तरह जल्दी लौट कर नहीं आती है।
सो बरौला में लालटेन और मोमबत्ती के कारोबार की भरपूर संभावना है। इच्छुक कारोबारी यहां पर अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
अगर स्थिति पर हंसने की बजाय आप इसकी गंभीरता को महसूस करना चाहते हैं तो एक बार नोएडा के बरौला क्षेत्र में थोड़ा समय बिताकर देखें। हालांकि नोएडा के सेक्टर 49 के अंतर्गत आने और एक मज़बूत वोट बैंक होने के बावजूद यहां मूल-भूत सुविधाओं तक का जितना घोर अभाव देखने को मिलता है, वह यहां के समस्त प्रशासन की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
गर्मी के जिस मौसम में तापमान 45 से भी ऊपर बार-बार जा रहा है, ऐसे समय में यहां पर बिजली का न आना, कम वोल्टेज पर आना या बार-बार आऩा-जाना बड़ी ही आम बात मानी जाती है। इतनी साधारण कि लगता ही नहीं यह नोएडा का कोई शहरी इलाका है, बल्कि यहां रहना किसी दूरदराज़ के ऐसे गांव में रहने का अनुभव दिलाता है, जिसे अभी ‘बिजली युग’ का इंतज़ार है।
यहां के स्थानीय लोग इतने समर्थ हैं कि वे महंगी लग्ज़री गाड़ियों से लेकर भोग-विलास की चीज़ें तक आराम से अफोर्ड कर सकते हैं, लेकिन उन तमाम ताम-झाम की उम्र बहुत कम होती है, क्योंकि उन पर सवाल उठाने के लिए यहां मूल बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
घर में एयरकंडीशनर चलाने की बात तो भूल ही जाइए, पंखा और फ्रिज जैसी ज़रूरी चीज़ें ही इस बिजली के चलते साथ दे जाएं तो भी ग़नीमत है। बिजली की इस आए दिन की दुर्दशा के चलते घर के सभी इलैक्ट्रॉनिक सामान एक-एक करके ख़राब होते जाते हैं, पर लोग कुछ नहीं कर पाते। इस क्षेत्र की बिजली इतनी ज़्यादा काटी जाती है कि घरों में पंखा तक चलाना दूभर हो जाता है। भले ही पंखा इनवर्टर से भी चल सकता हो, पर इनवर्टर की भी तो एक उम्र होती है। उस बेचारे को फुल चार्ज होने का मौका मिले, तब तो वह अपनी फुल सर्विस दे।
अब बिजली नहीं आती है तो पानी क्या ख़ाक आएगा। पानी की अपनी अलग कहानी है, पर वह फिर सही। अभी के लिए तो आप इतना ही समझ लीजिए कि बरौला वासी पानी को चम्मच से मापकर इस्तेमाल करने का हुनर जानते हैं।
स्टूडेंट्स या कामकाजी लोगों की बात है तो दिन चाहे इम्तिहान के हों, तीज-त्योहार के या फिर सामान्य दिनों की बात हो, बिजली का अभाव यहां हमेशा बना रहता है। घरों में बिजली के साज़ोसामान ख़राब हो रहे हैं, लोगों की सेहत ख़राब हो रही है, बच्चों की पढ़ाई ख़राब हो रही है और उत्तर प्रदेश के भविष्य और प्रशासन पर लगा सवालिया निशान भी संकट में ही है।
बरौला सेक्टर 49 के अंतर्गत तो आता है, लेकिन कोई पॉश सोसायटी तो है नहीं, महज़ एक वोट बैंक ही तो है, जिसकी बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति चुनावी मौसमों का वायदा होती है। बाकी दिनों में तो बरौला वासी भगवान भरोसे रहते हैं। लगता है कि बरौला की सुध लेने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है, क्योंकि समस्या एक दिन की नहीं है, यह रोज़ की बात है।
बिजली विभाग के अपने उत्तर हो सकते हैं, पर क्या सारे अधूरे सवाल बरौला के ही हिस्से लिखे हैं?
ग़ौरतलब है कि हमने यहां बरौला में रहने वाले उस तबके की तो बात ही नहीं की है आज, जो मध्यम वर्ग की सूची से भी नीचे खिसक जाता है, क्योंकि उस वर्ग के लिए तो पूरी दुनिया में कोई सुविधा होती ही नहीं है तो बरौला में ही क्यों होगी। कागजों में बहुत कुछ है, पर हकीकत में और ही कुछ है।
हम तो यहां बात कर रहे हैं बरौला के एक आम व्यक्ति की, जो कुछ सवाल कर रहा है और उन सवालों के उत्तर चाहता है।
चाहे आप दिन भर कितनी ही कड़ी मशक्कत करके आइए, बरौला की बिजली-हीन बेदर्द रातें आपको सोने नहीं देंगी। सारी रात अगर खुले आसमान तले तारे दिन गिन-गिनकर बितानी है तो बरौला आपके इस सपने की राजधानी है।
सारी समस्याएं कहां बताई जा सकती हैं सिर्फ़ एक ख़बर की कुछ बात में, एक दिन तो बिताइए बरौला की बिजली-हीन रात में।