विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष : आसमान की बुलंदी को छुने की चाहत, सुखा रही है धरती की कोख

कुछ वर्षो मे तेजी से विकास के नाम पर इमारते खड़ी की गई और पानी का दोहन हुआ है जिसकी वजह से यमुना और हिंडन के दोआब में बसे होने के बावजूद गौतमबुद्धनगर जिला सेमी क्रिटिकल जोन में पहुंच चुका है।

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Noida: गगनचुम्बीब इमारतों की नींव डालकर विकास की नई इबारत गढने में मशगूल गौतमबुद्धनगर जिले मे आने वाले दिनों में पानी का संकट झेलना पड़ सकता है। पिछले कुछ वर्षो मे तेजी से विकास के नाम पर इमारते खड़ी की गई और पानी का दोहन हुआ है जिसकी वजह से यमुना और हिंडन के दोआब में बसे होने के बावजूद गौतमबुद्धनगर जिला सेमी क्रिटिकल जोन में पहुंच चुका है। हालांकि वर्ष 2009 तक यह सेफ जोन में था। इस स्थिति को सुधारने के लिए शुरू की गईं रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसी योजनाएं सिर्फ फाइलों में सिमटकर रह गई हैं। हालात यही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब जिले में पानी 150 फुट से नीचे पहुंच जाएगा।

उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, गौतमबुद्धनगर जिले में वर्ष 2011 के दौरान कुल 59,913 हजार हेक्टेयर मीटर ग्राउंड वॉटर मौजूद था, जिसमें 51 पर्सेंट पानी का दोहन हो चुका है। विभाग के मुताबिक पूरे प्रदेश में ग्राउंड वॉटर निकालने की सबसे तेज दर गौतमबुद्धनगर की है। यहां 82 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से पानी बर्बाद किया जा रहा है। विभाग ने भूगर्भ जल दोहन के आधार पर जेवर ब्लॉक को क्रिटिकल जोन में शामिल किया है।

बिसरख जोन सेमिक्रिटिकल जोन, दनकौर सेमिक्रिटिकल, और पुरानी आबादी वाला इलाका दादरी सेफ ज़ोन में है। असल में वहां सिंचाई के लिए किसानों के पास नहरी पानी की सुविधा नहीं है, इसके चलते वे ट्यूबवेल का यूज करते हैं। हैरानी की बात यह है कि यमुना और हिंडन नदी के बीच बसा नोएडा सेमी क्रिटिकल जोन में पहुंच गया है। वर्ष 2002 तक यह एरिया सेफ जोन में शामिल था।

इसके बाद शहर में कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीज बढ़ने और जमीन में बेसमेंट बनाने के लिए गंदे नालों और सीवरों में ग्राउंड वॉटर बहाने से भूगर्भ जल का स्तर तेजी से गिरना शुरू हो गया। इसके अलावा मिनरल वाटर के लिए जगह-जगह खुले अवैध वॉटर प्लांटों से भी स्थिति काफी बिगड़ी है। विकास के नाम पर शहर मे जिस कदर इमारते आसमान को छूती जा रही है ठीक उसी रफ्तार मे जमीन का जल स्तर भी गिरता जा रहा है। मिनीरल वॉटर के लगे सैकडों अवैध प्लान्ट लोगों की प्यास तो बुझा रहे है, लेकिन धरती की कोख को भी सुखा रहे है।

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