Sameer Rao की बांसुरी और Rachana Yadav की झंकार ने बदलकर रख दी दिल्ली की शाम

बीते शुक्रवार की शाम को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें जानी मानी कत्थक नृत्यांगना रचना यादव और प्रतिभाशाली बांसुरी वादक समीर राव की प्रस्तुति ने लोगों को मंत्र-मुग्ध कर दिया।

शख़्सियत संस्कृति

Delhi: बीते शुक्रवार की रात जब दर्शक दिल्ली के मैक्समूलर मार्ग स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (India International Centre) के सी. डी. ऑडिटोरियम से बाहर निकले तो दिल्ली का तपता मौसम बारिश की हल्की-हल्की फुहारों से सराबोर हो चुका था और हवाओं में ठंडी राहत उतर आई थी। होता भी क्यों न, क्योंकि इस ऑडिटोरियम में ढलती शाम के साथ ही संगीत की दो ऐसी प्रस्तुतियां आयोजित की गई थीं, जिन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध करके रख दिया था।

मौका था इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा ‘आईआईसी डबल बिल डांस एंड म्यूज़िक रिसाइट्स’ का। इसके अंतर्गत संगीत एवं नृत्य की दो एकल प्रस्तुतियों का आयोजन किया गया था। हिंदुस्तानी बांसुरी वादन के अंतर्गत बैंगलूरू के समीर राव (Sameer Rao) की प्रस्तुति तथा दूसरी प्रस्तुति थी जानी-मानी कत्थक नृत्यांगना रचना यादव की।

इस कार्यक्रम का आयोजन समीर राव के बांसुरी वादन से हुआ था, जिसमें तबले पर उनका साथ दे रहे थे आदर्श शेनॉय। समीर राव ने जब बांसुरी के सुर छेड़े तो ऑडिटोरियम में खुसर-पुसर कर रहे श्रोता एक-एक करके गहरे मौन में चले गए। यहां तक कि एक समय के बाद तो ऐसा लगने लगा कि मानो हॉल में कोई और है ही नहीं, हैं तो केवल समीर राव की बांसुरी के स्वर। लगभग एक घंटे तक उन्होंने उपस्थित श्रोताओं को बांधे रखा। बांसुरी पर सधे हुए स्वरों के उतार-चढ़ाव का सिलसिला तब कहीं जाकर थमा, जब समीर राव की बांसुरी के सुर थमे। जैसे ही बांसुरी के स्वर मौन हुए, उनकी जगह उपस्थित श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट ने ले ली थी। ज़ाहिर है कि यह समीर राव की अपनी कला पर अधिकार की एक बानगी थी।

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गौरतलब है कि समीर राव ने दिग्गज बांसुरी वादक गुरु पंडित वीरभद्रा हीरेमथ और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी से बांसुरी वादन की शिक्षा पाई है। समीर राव के बांसुरी वादन में उनके गुरुओं का प्रभाव और आशीर्वाद, दोनों ही झलक रहा था।

इसके बाद अगली प्रस्तुति थी, देश की जानी-मानी और दिल्ली की लाड़ली कत्थक नृत्यांगना रचना यादव की। रचना यादव की प्रस्तुति की अगर बात की जाए तो महज़ डेढ़ से दो घंटे की प्रस्तुति में उन्होंने पूरे चौबीस घंटों को बांधकर रख दिया था। अपनी प्रस्तुति में उन्होंने जहां अथर्व वेद के मंत्रों के संगीतमय स्वरूप को संजोया तो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता का हिंदी रूपांतरित स्वरूप भी सहेजा था। इसके साथ ही उन्होंने अपनी एक रचना को भी भाव, लय, ताल प्रदान किए थे। भोर की पहली किरण से प्रबल-प्रचंड होते दिन, दिन से ढलती शाम और फिर गहराती रात तक के सफ़र को रचना यादव ने अपने भावप्रबल चेहरे और मुद्राओं के द्वारा इस तरह से प्रस्तुत किया कि दर्शक स्वयं भी उनके इस सफ़र के भागीदार बन गए थे। उनके द्वारा प्रस्तुत की गई पांच इंद्रियों की झलक ने तो मानो ऑडिटोरियम में मौजूद हर दर्शक को झूमने पर मजबूर कर दिया था। इसके बाद रचना की अगली नृत्य प्रस्तुति थी, ‘कर सिंगार पिया मिलन की आस’ और ‘पिया मिलन किस बिध मैं जाऊं, मोरी पायलिया शोर करे’ जैसी बंदिशों पर।

रचना यादव की कत्थक प्रस्तुति की विशेषता यह है कि वे पारंपरिक और समसामयिकता का अनूठा संगम अपनी कला के ज़रिये उड़ेल देती हैं।

रचना यादव के इस कार्यक्रम में मिलिंद श्रीवास्तव की प्रकाश सज्जा ताबिले-तारीफ़ थी। भोर की पहली किरण से लेकर ढलती रात तक के समय को उन्होंने प्रकाश व्यवस्था के ज़रिये मंच पर साकार कर दिया था।

संगीत में रचना यादव का साथ दे रहे थे- पखावज पर महावीर गांगानी, तबले पर योगेश गंगानी, हारमोनियम एवं गायन में समीउल्लाह ख़ान, सारंगी पर मोहम्मद अय्यूब, बांसुरी पर किरण कुमार, सहयोगी गायन पर सबा हाशमी और कविताओं को स्वर दिया था, नीति जैन ने। कार्यक्रम की परिकल्पना एवं संयोजन स्वयं रचना यादव का था।

इस कार्यक्रम में अनेक वरिष्ठ साहित्यकार, कलाकार और अन्य प्रबुद्ध वर्ग के दर्शक मौजूद थे।

यदि इस बीती सुरीली शाम की बात की जाए तो कोरोना महामारी के कुम्हलाए हुए तन-मन पर यह किसी राहत भरी बारिश की फुहार सरीखी थी। बिल्कुल वैसी ही, जैसी इस कार्यक्रम के दौरान ऑडिटोरियम के बाहर हो रही थी।

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