किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से : गुलज़ार
गुलज़ार साहब की नज़्म इन बेजान किताबों के एहसास ऐसे बयान करती है, जिसे पढ़कर आप इन बेजुबान किताबों से भी बातें करने लगेंगे।
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